25अप्रैल 2025 | नई दिल्ली | लेखक: डॉ. जी. एस. पांडेय
बलूचिस्तान का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, ऐतिहासिक रूप से एक स्वतंत्र और स्वायत्त क्षेत्र रहा है। ब्रिटिश भारत के दौरान, यह क्षेत्र मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित था: कालात, मकरान, लासबेला और खरान। इनमें से कालात सबसे प्रमुख था, जिसे एक स्वतंत्र रियासत के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 15 अगस्त 1947 को, जब भारत और पाकिस्तान स्वतंत्र हुए, तब कालात ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। हालांकि, पाकिस्तान ने इस स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं किया और 27 मार्च 1948 को कालात को पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। इस विलय के खिलाफ बलूच नेताओं ने विरोध किया, जिसे पाकिस्तान ने बलपूर्वक दबा दिया।
बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय: एक विवादास्पद प्रक्रिया
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित मेजर जनरल (रिट.) डॉ अनिल कुमार लाल के एक लेख के अनुसार, बलूचिस्तान के खान ऑफ कालात, मीर अहमदयार खान ने भारत में विलय का प्रस्ताव दिया था। लेकिन 27 मार्च 1948 को अखिल भारतीय रेडियो पर वी.पी. मेनन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि “खान ऑफ कालात भारत में विलय करना चाहते हैं, परंतु भारत का उससे कोई लेना-देना नहीं है।”
जिन्ना ने बलूचिस्तान को पाकिस्तान में विलय की सलाह दी। पाकिस्तान की सेना ने कालात रियासत पर हमला कर दिया। 28 मार्च 1948 को मेजर जनरल मोहम्मद अकबर खान के नेतृत्व में 7वीं बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलज़ार ने हमला किया और खान को कराची ले जाकर जबरन हस्ताक्षर करवाए। इसी दौरान पाकिस्तान नौसेना के जहाज पासनी और जिवानी पहुँच गए। पाकिस्तान ने मकरान, लासबेला और खरान को अलग-अलग पाकिस्तान में शामिल कर लिया, जिससे कालात समुद्र से कट गया। इस भू-राजनीतिक दबाव के चलते, खान को पाकिस्तान में विलय के लिए मजबूर किया गया। इस प्रक्रिया को बलूच नेताओं ने "जबरन कब्जा" करार दिया है।
औपनिवेशिक शोषण और जनसंहार
बलूचिस्तान को दशकों से एक उपनिवेश की तरह शोषण का शिकार बनाया गया है। खनिज, गैस और समुद्र तट लूटे गए, जबकि लोगों को जबरन गायब किया गया, मारा गया और उनकी सामूहिक कब्रें बना दी गईं। हाल में क्वेटा के कासी कब्रिस्तान में 13 अनजान लाशें गुपचुप तरीके से दफन की गईं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह सुनियोजित जनसंहार है। बलूचिस्तान के कई जिलों — तुरबत, पंजगुर, खुज़दार, डलबंदीन, मस्तुंग, नसीराबाद और कराची व इस्लामाबाद में प्रदर्शन हुए। आंदोलन अब पूरे देश में फैल गया है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाकर, उन्हें गिरफ्तार कर, और गायब कर, पूरे क्षेत्र को युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है।
बलूचिस्तान मुक्ति सेना (BLA): स्वतंत्रता की मांग
हाल के बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) हमलों ने पाकिस्तान को झकझोर दिया है। अपनी विफलता छुपाने के लिए अब वह गैर-हिंसक कार्यकर्ताओं को भी आतंकवादी कह रहा है। यह राज्य की गहरी हताशा और जनविरोध से भय को दर्शाता है। BLA एक बलूच राष्ट्रवादी संगठन है, जो बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है। यह संगठन पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में लिप्त है। BLA का आरोप है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रहा है, जबकि स्थानीय लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है।
बलूचिस्तान के लोगों की प्रमुख मांगें हैं:
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स्वतंत्रता: बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए।
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संसाधनों पर अधिकार: बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय लोगों का अधिकार सुनिश्चित किया जाए।
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मानवाधिकारों की रक्षा: पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को रोका जाए।
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राजनीतिक स्वायत्तता: बलूचिस्तान को राजनीतिक रूप से स्वायत्तता प्रदान की जाए।
बलूचिस्तान झुकेगा नहीं
पाकिस्तान ने बलूच आंदोलन को कुचलने के लिए हर हथियार का प्रयोग किया है। पाकिस्तानी राज्य ने डॉ. माहरांग और BYC के नेताओं पर झूठे एफआईआर दर्ज कर दिए हैं, जिसमें दावा है कि उन्होंने हथियारबंद भीड़ का नेतृत्व किया। परन्तु वीडियो और प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि केवल पुलिस ने गोलियाँ चलाईं। गोलियाँ, जबरन गायब करना, डिजिटल ब्लैकआउट, झूठे आरोप — लेकिन बलूच जनता ने दशकों तक संघर्ष किया है और अब भी कर रही है। इतिहास ने सिखाया है कि कोई भी दमनकारी ताकत सदा नहीं टिकती। बलूचिस्तान की यह पुकार आज सिर्फ पाकिस्तान की नीति पर सवाल नहीं उठाती — यह पूरी दुनिया से न्याय की माँग करती है।
भारत की रणनीतिक भूमिका: बलूचिस्तान को समर्थन
भारत ने बलूचिस्तान के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। 2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का उल्लेख किया, जिससे पाकिस्तान में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। भारत ने बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों की निंदा की है और वहां के लोगों के अधिकारों की रक्षा की मांग की है। बलूचिस्तान का इतिहास, पाकिस्तान में उसका जबरन विलय और वहां के लोगों के संघर्ष को देखते हुए, भारत के लिए यह एक रणनीतिक अवसर हो सकता है। हालांकि, भारत को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और कूटनीतिक संतुलन का ध्यान रखते हुए कदम उठाने होंगे। बलूचिस्तान के लोगों के अधिकारों की रक्षा और उनकी स्वतंत्रता की मांग को समर्थन देकर, भारत क्षेत्रीय स्थिरता और न्याय की दिशा में योगदान दे सकता है।
लेखक: डॉ. जी. एस. पांडेय
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