Skip to main content

भारत-चीन तनाव: क्या पाकिस्तान बन गया है चीन की साजिश का हथियार?



2 मई, 2025 | नई दिल्ली लेखक: डॉ. जी. एस. पांडेय

चीन-अमेरिका टैरिफ युद्ध और भारत का उदय

जब से अमेरिका ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए हैं, तब से चीन की अर्थव्यवस्था दबाव में है। वैश्विक कंपनियाँ चीन छोड़कर दूसरे सुरक्षित देशों की तलाश में हैं और भारत, एक शांत और स्थिर विकल्प के रूप में, सबसे आगे खड़ा है। यह चीन के लिए एक बड़ा झटका है।

चीन की रणनीति: अप्रत्यक्ष युद्ध और छद्म साझेदार

चीन जानता है कि वह सीधे भारत से युद्ध नहीं कर सकता। इसलिए वह अप्रत्यक्ष युद्ध की रणनीति अपना रहा है ऐसे देशों को समर्थन देकर जो भारत की छवि और आंतरिक स्थिरता को कमजोर कर सकते हैं। इस कड़ी में पाकिस्तान सबसे अहम भूमिका निभा रहा है।

बांग्लादेश और मालदीव जैसे देश भी कभी-कभी भारत के विरोध में झुकते दिखते हैं। यह एक बड़ी भू-राजनीतिक साजिश का संकेत हो सकता है।

भारत पर दोतरफा दबाव: युद्ध या छवि की क्षति

अगर भारत युद्ध करता है, तो उसकी "शांत और स्थिर निवेश स्थल" की छवि को धक्का लग सकता है। वहीं, यदि भारत जवाब नहीं देता, तो जनता की नज़रों में सरकार कमज़ोर दिखेगी और सैन्य बलों का मनोबल गिर सकता है।

चीन की नीति का जवाब: भारत को क्या करना चाहिए?

भारत को सूझबूझ, संयम और दृढ़ रणनीति से काम लेना होगा। चीन की रणनीति को समझकर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि:

  • व्यापारिक छवि बनी रहे
  • आंतरिक सुरक्षा मजबूत हो
  • कूटनीतिक स्तर पर चीन को बेनकाब किया जाए
  • पाकिस्तान को कड़ा संदेश मिले

 निष्कर्ष: यही समय है, सही समय है

अगर भारत ने इस समय स्पष्ट नीति और कठोर निर्णय नहीं लिए, तो न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि बांग्लादेश और मालदीव जैसे देश भी चीन के प्रभाव में भारत विरोधी रवैया अपना सकते हैं। यह सिर्फ युद्ध का प्रश्न नहीं है, यह भारत की वैश्विक छवि, मनोबल और रणनीतिक स्थिति का सवाल है। 

#भारतचीनतनाव #GeopoliticsExplained #IndiaChinaBorder #PakistanStrategy #भारतविरोधीसाजिश #ForeignPolicyIndia #ChinaVsIndia #StrategicAffairs #GlobalImage #IndiaStrong #देशकीबात #TariffWarImpact #IndoChinaTension #NeighbourhoodPolitics #GeopoliticalThreat

Comments

Popular posts from this blog

लोकतंत्र बनाम न्यायपालिका: डॉ निशिकांत दुबे की तीखी टिप्पणी

क्या सुप्रीम कोर्ट की आलोचना लोकतंत्र के खिलाफ है? पढ़िए निशिकांत दुबे के बयान पर मचा विवाद। डॉ. निशिकांत दुबे, 53 वर्षीय अनुभवी सांसद, अपने सटीक तथ्यों और तीखे तर्कों के लिए जाने जाते हैं। वे संसद में निर्भीकता से अपनी बात रखते हैं और अक्सर सच्चाई को उजागर करने का प्रयास करते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से संबंधित उनके वक्तव्य ने एक नई बहस को जन्म दिया है कि क्या सच्चाई कहना, लोकतंत्र की संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन है? हमारे लोकतंत्र में न्यायपालिका एक ऐसा स्तंभ है जिस पर आमजन का अटूट विश्वास बना रहता है। यह विश्वास ही लोकतंत्र की बुनियाद है। चाहे न्याय में देरी हो, प्रक्रियाएं जटिल हों, या कुछ फैसलों को लेकर असहमति हो — फिर भी न्यायपालिका के प्रति भरोसा बनाए रखना आवश्यक माना जाता है। यह भरोसा ही लोगों को जीने की आशा देता है, खासकर उन लोगों को जिनके पास अन्य विकल्प सीमित होते हैं। न्याय की राह में देरी, बार-बार की तारीखें और लंबी प्रक्रियाएं आम आदमी के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। फिर भी वह अंतिम उम्मीद न्याय से ही जोड़े रखता है। यही वजह है कि आमजन अक्सर न्यायालय में सुधार की आवश्यकता...

बलूचिस्तान की पुकार – दमन के विरुद्ध एक जनआंदोलन

  25अप्रैल 2025  |  नई दिल्ली  |   लेखक: डॉ. जी. एस. पांडेय बलूचिस्तान का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य बलूचिस्तान , जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, ऐतिहासिक रूप से एक स्वतंत्र और स्वायत्त क्षेत्र रहा है। ब्रिटिश भारत के दौरान, यह क्षेत्र मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित था: कालात , मकरान , लासबेला और खरान । इनमें से कालात सबसे प्रमुख था, जिसे एक स्वतंत्र रियासत के रूप में मान्यता प्राप्त थी।​ 15 अगस्त 1947 को, जब भारत और पाकिस्तान स्वतंत्र हुए, तब कालात ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। हालांकि, पाकिस्तान ने इस स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं किया और 27 मार्च 1948 को कालात को पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। इस विलय के खिलाफ बलूच नेताओं ने विरोध किया, जिसे पाकिस्तान ने बलपूर्वक दबा दिया।​ बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय: एक विवादास्पद प्रक्रिया टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित मेजर जनरल (रिट.) डॉ अनिल कुमार लाल के एक लेख के अनुसार, बलूचिस्तान के खान ऑफ कालात , मीर अहमदयार खान ने भारत में विलय का प्रस्ताव दिया था। लेकिन 27 मार्च 1948 को अखिल भारतीय रेडियो पर...

सिंधु जल संधि का निलंबन: भारत जल कूटनीति में रणनीतिक परिवर्तन की ओर

                                                                                   Photo by Edward Byers on Unsplash 24 अप्रैल 2025 | नई दिल्ली |   लेखक: डॉ. जी. एस. पांडेय भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) को एक ऐसी संधि माना जाता है , जिसने तीन युद्धों और अनेक सैन्य संघर्षों के बावजूद दोनों देशों को जल विवादों से अलग रखा। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में तैयार हुई थी और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सफल जल - वितरण समझौते के रूप में सराहा गया। लेकिन हाल ही में भारत द्वारा इस संधि को निलंबित करने का निर्णय न केवल उपमहाद्वीप की भू - राजनीति को प्रभावित करेगा , बल्कि भारत की जल कूटनीति में एक निर्णायक मोड़ भी साबित हो सकता है । सिंधु ...